Agreeing is an art (सहमति जताना भी एक कला है )
Agreeing is an art. Hindi Translation Below
Behavior is an essential initiative to master skill and human relations. The art of expressing consent In today's age, acquiring proficiency in this art is like acquiring a jewel. It is a very easy technique to express consent and it helps a lot in life.
Remember, it is foolish to disagree on the matter. A sensible, intelligent and big man is one who has to overcome a very wrong situation.
Make up your mind not to get into controversy. Learn to agree with ease.
* When do you agree?
Agreeing to agree is not enough. Let others feel that you really agree. Put their eyes in their eyes and agree and say "I agree with you or you are right."
* Do not express disagreement unless extremely necessary.
If you do not agree, as is often the case, do not express disagreement until it becomes extremely important. You will find that this happens rarely.
* Accept your mistake.
On realizing your mistake, say in open, clear words "I made a mistake", my mistake was "Only such a big man can do this and such a man is also well liked. Instead of you an average person will lie, deny or make excuses.
* Do not argue.
Arguments cause a rift in the relationship. Even if you are right in your place, do not argue. Winning a debate is as difficult as making someone friends by arguing.
* Stay beyond the quarrelsome person.
A quarrelsome person wants only one thing - fight, you do not fall into his trap, avoid fighting, quarrels will grumble, fire will rise and unsympathetic will start to appear.
These elements of the art of agreeing are
* Consenters are preferred.
* Resentment increases with disagreement.
* Disagree people are not liked.
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सहमति जताना भी एक कला है
व्यवहार कुशलता और मानवीय संबंधों में महारत हासिल करने का एक जरुरी पहल है । सहमति प्रकट करने की कला आज के जमाने में इस कला में प्रवीणता हासिल करना एक नगीना हासिल करने जैसी बात है । सहमति प्रकट करना एक बेहद आसान तकनीक है और इससे जिंदगी में बड़ी मदद मिलती है ।
याद रहे , कि बात बात पर असहमति जताना मूर्खता होती है । एक समझदार , चतूर तथा बड़ा आदमी वह होता है जिसे एक बहुत ही गलत स्थिति को उबारना होता है ।
मन ही मन तय कर लें कि विवाद में नहीं पड़ना । सहजता से सहमत होना सीखें ।
*आप कब सहमत हैं , यह जताएं ।
सहमत होने के लिए सहमति जताना ही काफी नहीं हैं । औरों को महसूस होने दें कि आप वाकई सहमत हैं
उनकी आंखों में आंखें डालकर सहमति प्रकट करें और कहें " मैं आपसे सहमत हूं या आप सही कह रहे हैं । "
*जब तक बेहद जरूरी न हो असहमति प्रकट न करें ।
यदि आप सहमत न हों , जैसा कि अक्सर होता है , असहमति तब तक न जताएं जब तक कि वह बेहद जरूरी न हो जाए । आप पाएंगे कि ऐसा कम ही होता हैं ।
*अपनी भूल स्वीकार करें ।
अपनी गलती का एहसास होने पर खुले , साफ शब्दों में कहें " मुझसे गलती हुई " , भूल मेरी थी "
ऐसा एक बड़ा आदमी ही कर सकता है और ऐसे आदमी को खूब पसंद भी किया जाता है ।
आप की जगह एक औसत इंसान झूठ बोलेगा , नकारेगा या बहाने बनाएगा ।
*बहस मत कीजिए ।
बहसबाजी से रिश्तों में दरार ही पड़ती है । अगर आप अपनी जगह सही भी हो , बहस मत कीजिए ।
बहस जीतना ही मुश्किल है जितना कि बहस कर किसी को दोस्त बनाना ।
*झगड़ालू इंसान से परे रहें ।
झगड़ालू इंसान सिर्फ एक चीज चाहता है - लड़ना , आप उस के जाल में न पड़े , लड़ने से बचें , झगड़ालू बड़बड़ाएगा , आग उगलेगा और भोंडा नजर आने लगेगा ।
सहमत होने की कला के ये तत्त्व हैं
*सहमति जतानेवालों को पसंद किया जाता है ।
*असहमति से नाराजगी बढ़ती ही है ।
*असहमत लोगों को पसंद नहीं किया जाता ।
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